*जय कपीस तिहुँ लोक उजागर*

     *जय कपीस तिहुँ लोक उजागर*

वैसे तो हनुमान चालीसा पूरे भारत में लोकप्रिय है किन्तु विशेष रूप से उत्तर भारत में यह बहुत प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। लगभग सभी हिन्दुओं को यह कण्ठस्थ होता है। सनातन धर्मावलंबियों के मध्य न सिर्फ यह एक मान्यता है बल्कि उन्हें पूर्ण विश्वास होता है कि विशेषतः मंगलवार एवं शनिवार को हनुमान जी की पूजा एवं आराधना के साथ हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्तों को संकट से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

हनुमान चालीसा न सिर्फ रहस्यों से परिपूर्ण है बल्कि हनुमान चालीसा की प्रत्येक चौपाई शाबर मंत्रों की भांति कार्य करती हैं। रामकाज के लिए हर समय तत्पर रहने वाले हनुमान जी के जन्मोत्सव पर आज हनुमत प्रेरणा से तुलसीदास जी द्वारा अवधी भाषा में रचित उसी "हनुमान चालीसा" के एक गूढ़ शब्द का वास्तविक अर्थ समझने का प्रयास करेंगे। सामान्यतः अधिकांश भक्त उस शब्द का सर्वसाधारण अर्थ ही लगाते हैं, क्योकि प्रथम दृष्टि में वह साधारण अर्थ ही वास्तविक अर्थ प्रतीत होता हैं।

हनुमान चालीसा का प्रारंभ गुरु प्रार्थना (श्री गुरु चरन सरोज .........) से होती हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह हैं कि गोस्वामी तुलसीदास जी के गुरु हनुमान जी हैं और अराध्य प्रभु श्रीराम। हनुमान चालीसा में गुरु प्रार्थना के उपरान्त जो पहली स्तुति आती हैं, वो यह हैं :-

"जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर"।

यहाँ हनुमान जी के लिए "कपीस" शब्द आया हैं, इसका स्थूल या साधारण अर्थ होता हैं 'वानरों के राजा', जन साधारण भी यही अर्थ मानकर चलता हैं लेकिन हनुमान चालीसा के ही अंत में हनुमान जी के लिए "सूरभूप" विशेषण आया हैं, इसका अर्थ होता हैं 'देवताओं के राजा' या "देवताओं के स्वामी"। अब ऐसे में जो देवताओं के स्वामी हैं, उनको वानरों के राजा बनाने में उनकी विशेषता होगी या मजाक होगा ? वैसे आप सबको यह भी ज्ञात होना चाहिए कि हनुमान जी का कभी भी, किसी भी रूप में वानरों के राज्य पर कभी अभिषेक नहीं हुआ था। इसलिए "कपीस" शब्द से 'वानरों का राजा' यह अर्थ समुचित नहीं होगा। इसलिए यह तो स्पष्ट हैं कि यहाँ 'कपीस' शब्द से अवश्य ही कोई अन्य भाव हैं।

यहाँ पर 'कपीस' शब्द का जो असली भाव हैं, उसको जानने के लिए "तिहुँ लोक उजागर" से संकेत किया गया हैं। संस्कृत शब्दकोश के अनुसार 'कपि' शब्द का एक अर्थ सूर्य भी होता हैं। हनुमान जी ने बचपन में ही सूर्य को निगल लिया था, उस समय तीनो लोको में अँधेरा छा गया था। इसके बाद उन्होंने देवताओं के प्रार्थना पर सूर्य को कृपा पूर्वक मुक्त कर दिया था। विनय पत्रिका के पद में गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान जी के लिए 'राहू-रवि-शक्र-गर्वखर्वीकरण' का विशेषण दिया हैं। अर्थात हनुमान जी, राहू, सूर्य, इंद्र इनके गर्व को समाप्त करने वाले हैं। इस प्रकार सूर्य पर कृपा और दया करने के कारण हनुमान जी "कपीस" अर्थात सूर्य के ईश् हुए।

यदि "कपीस" का अर्थ वानरों के राजा माना जाए तो उसी हनुमान चालीसा में "तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा" से विरोध होगा क्योकि एक समय में वानरों का एक ही राजा होगा। हनुमान जी तो कृपा दृष्टि मात्र से दूसरों को राजा बनाने वाले हैं, यह "लंकेश्वर भय सब जग जाना" चौपाई से भी प्रमाणित होता हैं। "कपीस" जैसे गूढ़ पद से हनुमतत्व पर तुलसीदास जी ने एक प्रभावी संकेत दिया हैं कि संसार में वह जैसा बताए जाते हैं उससे बहुत ही विलक्षण हैं। 

*जय श्रीराम*

पीयूष चतुर्वेदी ✍️
बलिया (उ.प्र.)



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