*चलो प्रयागराज चलें*


आओ चलें प्रयागराज चलें,

चलें संगम स्नान करें।

गंगा, यमुना सरस्वती का ध्यान करें, 

अपने उद्धार का प्रयास करें।

लेटे हनुमान जी को प्रणाम करें,

शांति का ध्यान करें।

आओ चलें प्रयागराज चलें।।


महाकुम्भ है पर्व महान,

जिसमें हम करते हैं अमृत स्नान।

जिसके लिए रहता हरदिल में अरमान,

है यह ऐसा स्थान जहां मिलता धार्मिक ज्ञान।

सभी सात्विक सजोयें हैं जानें का अरमान, 

अधिक जुटान सुन कुछ हैं परेशान।

लेकिन इसका खुद कर सकते हैं निदान,

कर लेंगे जब नियमों का ध्यान।

आओ चले प्रयागराज चलें,

चलें संगम स्नान करें।


है स्नान की महिमा बहुत,

अपना देश आस्थाओं का सागर है।

है तो यही बात यहाँ,

सब में होता समर्पण का भाव यहाँ।

त्याग-तपस्या सनातनी मूल्य है,

लोग रहते इससे परिपूर्ण हैं।

स्वयं वेदना सह कर भी,

करते औरों को सानंद हैं।


हमने भी मन में ठाना है,

प्रयागराज जाना है।

अपनों को प्रेरित कर जाना है।

सनातनी परम्परा को निभाना है,

सुखद स्मृतियां लाना है।

आओ प्रयागराज चलें,

चलें संगम स्नान करें।


कुछ दिनों से थी मन में आश,

अपने विचारों को दें महाकुम्भ पर खास।

जब हम हो जायेंगें तैयार,

स्व पूर्ण हो जाएगी आश।

कोई कार्य नहीं दुष्कर होता,

कर्म पथ पर जब पथिक अग्रसर होता।

पा जाता है पथिक मंजिल,

प्रयास जब निरन्तर होता।

आओ चलें प्रयागराज चलें,

चलें संगम स्नान चलें।


राजेश कुमार सिंह ✍️

मऊ, उत्तर प्रदेश।




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