देश की एकता, अखंडता और स्वाभिमान के प्रतीक थे लौह पुरूष पटेल


15 दिसंबर पुण्यतिथि पर पुण्य स्मरण :-

साधारण किसान परिवार में जन्म लेने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दुर्दमनीय महान सेनानी, अविश्रांत राष्ट्रकर्मी, उच्च कोटि के निष्ठावान देशभक्त, ऋषियों जैसी दूर दृष्टि रखने वाले राजनेता, दृढ़ संकल्पित प्रशासक और अपने फौलादी इरादों, व्यक्तित्व एवं कृतित्व से राष्ट्रीय एकता को परिभाषित करने वाले भारतीय बसुंधा के ईमानदार, सचरित्र, होनहार, कर्तव्य परायण सपूत थे। स्वाधीनता आंदोलन के अंतिम चरण के अग्रिम क़तार के नेताओं में विख्यात बल्लभभाई का तेजस्वी और ओजस्वी व्यक्तित्व समस्त भारत पर अपना प्रभाव व्यक करता है। गीता के प्रवक्ता श्री कृष्ण के अंतिम निवास स्थल, स्वामी दयानन्द सरस्वती और महात्मा गांधी की जन्म भूमि गुर्जर प्रदेश में पैदा हुए बल्लभभाई पटेल के व्यक्तित्व में गुजरात की सरलता, दृढ़ता, देशानुराग और अध्यवसाय स्पष्ट रूप से मुखरित हुआ। स्वयं को किसान पुत्र कहने वाले सरदार पटेल का जन्म विशुद्ध गांव की मिट्टी में हुआ और मिट्टी से उनका शरीर धूल धूसरित हुआ किन्तु अटूट अध्यवसाय, घनघोर परिश्रम, पुरुषार्थ, पराक्रम, साहस, अदम्य उत्साह, उत्कट देशभक्ति, त्याग और कष्ट सहन की शक्ति के बल पर वह भारतीय राजनीति के हिमालय के उतुंग शिखर पर पहुंचे। पेशे से वकील सरदार पटेल महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में पूर्ण तन्मयता से ईमानदार सच्चे सत्याग्रही की तरह समर्पित भाव से जुट गए। त्याग, संगठनात्मक कौशल और अध्यवसाय के कारण शीघ्र ही वे शीर्षस्थ नेताओं में शुमार किए जाने लगे। सरदार पटेल का एक ही महामंत्र था भारत का विमोचन। बाल गंगाधर तिलक की भांति भारतीय राष्ट्र को सप्राण, सक्षम, सशक्त और सुदृढ़ बनाना उनके जीवन का महामंत्र था।

1928 में बारदोली सत्याग्रह का कुशल नेतृत्व कर किसानों के बीच उन्होंने अपना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया। अपने नपे-तुले शब्दों में, किसानों को उनके अधिकारों के लिए जागरूक करने वाले छोटे-छोटे भाषणों में गजब की शक्ति थी। उनके नेतृत्व का करिश्मा था कि-बारदोली सत्याग्रह में सत्रह हजार किसानों ने जेल जाने का साहस दिखाया। इस सफल आंदोलन ने भारत के राजनीतिक आकाश में उनको चमकते सितारे से भारतीय जनमानस को रुबरु कराया। 1931 में कराची में होने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन की अध्यक्षता की जिसमें मौलिक अधिकारों से संबंधित प्रस्ताव पास किया गया। भारत के संवैधानिक विकास क्रम यहै प्रस्ताव अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ। उनकी वेशभूषा एक साधारण किसान की थी। किन्तु उनकी आंखों में राष्ट्र के गौरवमय, आलोकमय, तेजस्वी भविष्य का चित्र स्थापित किया था। राष्ट्र के इतिहास में उनका गौरवशाली स्थान है। सदियों तक उनका व्यक्तित्व और कृतित्व देश के लोगों में तेज़, ओज, वीरता, शौर्य, साहस, त्याग, तपस्या, बलिदान, अध्यवसाय और निरंतर निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र सेवा का भाव भरता रहेगा।

 स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री के रूप में उनकी प्रशासनिक योग्यता, दक्षता, परिश्रम, पराक्रम और प्रतिभा से सारा देश परिचित एवं प्रभावित हुआ। देश की एकता अखंडता को मजबूत करने के लिए पटेल का अविस्मरणीय योगदान देशी रियासतों का भारत में विलय कराना है। राजनीतिक सूझ-बूझ, व्यवहार कुशलता, दृढ़ इच्छाशक्ति और उच्च कोटि की राजनयिक योग्यता से पांच सौ से अधिक छोटी-बड़ी देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलयन कराकर देश की भौगोलिक सीमाओं का विस्तार किया और देश की एकता अखंडता को मजबूत करने का श्लाघनीय कार्य किया। इस महान कार्य के लिए उनकी तुलना जर्मनी के लौह पुरुष आटोवान बिस्मार्क से की जाती है। जो कार्य विस्मार्क ने "लौह और रक्त" की नीति द्वारा किया,वह कार्य पटेल ने कुशल राजनय द्वारा कर दिया। बिस्मार्क ने 7- 8 वर्षों में श्लेसविग, होल्सटीन आस्ट्रिया तथा फ्रांस से युद्ध कर जर्मनी का एकीकरण किया। परन्तु पटेल ने गृहमंत्री बनते ही एक दो वर्षों में यह कार्य सम्पन्न कर दिया। हैदराबाद का भारतीय संघ में विलय चिरस्मरणीय परिघटना है। जिस समय हैदराबाद का भारतीय संघ में विलय हो रहा था उस समय ब्रिटिश सरकार के भूतपूर्व प्रधानमंत्री और अनुदार दल के नेता चर्चिल ने इसकी तिखी आलोचना की। इसके प्रति उत्तर में पटेल ने सात पृष्ठो का प्रतिवादात्मक पत्र लिखा। यह पत्र उस समय लंदन और न्यूयॉर्क पढ़ने वाले भारतीयों के मध्य खूब चर्चित और लोकप्रिय हुआ।

प्राचीन यूनानी दार्शनिक प्लेटों के अनुसार मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं-प्रथम स्वर्ण निर्मित उच्च कोटि कोटि के बुद्धि सम्पन्न उच्च स्तरीय आचरण शील मानव जो अपनी उदात्त मेधा शक्ति से शासन संचालन करते हैं। द्वितीय रजत निर्मित जो सैन्य बल पर रक्षण का कार्य करते हैं, तृतीय लौह निर्मित या पीतल निर्मित मनुष्य जो सम्पूर्ण मानवजाति का भरण-पोषण करते हैं। इस दृष्टि से सूक्ष्मता से पटेल का ईमानदारी से विश्लेषण किया जाये तो उनके प्रशासनिक और राजनीतिक व्यक्तित्व और कृतित्व के आधार पर वे स्वर्ण निर्मित थे क्योंकि उन्होंने अपनी उदात्त चेतना से राजनीतिक दायित्वों का निर्वहन किया था और अपने प्रशासनिक कर्तव्यों का पालन करते हुए ईमानदारी, सच्चरित्रता और दक्षता को उच्चतम स्थान दिया था। प्रायः भारतीय राजनीतिक विचार, विमर्श, चिंतन और लोकमानस में पटेल श्रद्धा पूर्वक लौह पुरुष के रूप में याद किए जाते हैं। परन्तु यह एकांगी विश्लेषण है। उनके नेतृत्व में लौह निर्मित दृढ़ता के साथ स्वर्ण निर्मित चमक भी थी। वह किसी स्वर्ण जौहरी के कुशल हाथों द्वारा तपे तपाए सोना थे जो भारतीय बसुंधरा पर पर स्वर्णिम बिहान की कल्पना को साकार करने के लिए कृत संकल्पित थे।

भारतीय संविधान के निर्माण और संवैधानिक परम्पराओं को स्थापित करने और सुदृढ़ीकरण करने में सरदार पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। संविधान निर्माण के कुल पन्द्रह समितियां बनाई गई थी, जिसमें पटेल तीन महत्वपूर्ण समितियों के अध्यक्ष थे। भारत में जब -जब केन्द्रीय शक्तिया कमजोर हूई तब-तब देश की सीमाओं पर बाह्य आक्रमण की संभावनाएं प्रबल हूई। इस ऐतिहासिक सच्चाई से सबक लेते हुए पटेल ने प्रांतीय इकाइयों को पर्याप्त स्वायत्तता देते हुए मजबूत केन्द्र की सिफारिश की। उन्ही के प्रस्ताव पर संविधान सभा ने यह स्वीकार किया कि-आवश्यक होने पर केन्द्र सरकार राज्य सरकार की शक्तियों को अपने पास ले सकती है। पंडित नेहरू सहित कई राजनेता चाहते थे कि-राष्ट्रपति का चुनाव महज़ संसद द्वारा होना चाहिए परन्तु सरदार पटेल की अनुशंसा पर यह प्रावधान किया गया कि - राष्ट्रपति के चुनाव में संसद सदस्यो के साथ-साथ राज्यों के विधानसभाओं के सदस्य भी भाग लेंगे। संविधान सभा में सम्पत्ति के अधिकार मौलिक अधिकार बनाने के सवाल खूब गरम-गरम बहस हूई। सरदार पटेल के प्रस्ताव पर यह सुनिश्चित हुआ कि-सम्पत्ति के अधिग्रहण के उपरांत क्षतिपूर्ति प्रदान की जायेगी। सरदार पटेल वैयक्तिक अधिकारों के साथ राज्य सत्ता के माध्यम से देश की एकता और अखंडता को मजबूत करना चाहते थे। 

उस दौर के वामपंथी और समाजवादी पटेल को पूंजीवादी व्यवस्था का पोषक और समाजवाद का विरोधी कहकर उपहास करते रहते थे। परन्तु पटेल लगभग चार दशक तक अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध अटूट संघर्ष करते रहे। उस समय समस्त राजनीतिक दलों, आंदोलनकारियों, राष्ट्रवादियों और संघर्ष करने वाली समस्त ताकतों को संगठित कर साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को जीतना उनका प्राथमिक लक्ष्य था। उस समय वर्ग चेतना विकसित कर वर्ग संघर्ष को आगे बढ़ाना अव्यवहारिक तथा अनावश्यक था। भारत में व्याप्त दरिद्रता के विरुद्ध सरदार पटेल अपने और अनोखे ढंग से लड़ रहे थे। भारतीय अर्थतंत्र में सहकारी समितियों, लघु और कुटीर उद्योगों को प्रश्रय देकर आर्थिक विकेन्द्रीयकरण के सिद्धांत को आगे बढ़ाना चाहते थे। कभी-कभी वह पश्चिमी समाजवाद का मज़ाक़ उड़ाया करते थे परन्तु अपने ढंग से वह गांधीवादी समाजवाद के पक्के समर्थक थे।

अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पटेल महात्मा गांधी के सलाहकार थे। उस समय तक साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के प्रति उनकी दृष्टि वैश्विक आयाम धारण करने लगी थी। सरदार पटेल अपने जीवन चरित्र में लिखते हैं कि-उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एशिया छोड़ो आन्दोलन के मंत्र का उद्घोष किया था। इस तरह महात्मा गांधी की तरह पटेल भी भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को व्यापक वैश्विक परिप्रेक्ष्य एवं परिवेश में देखते थे। भावुक और साहित्यिक स्वभाव से अलग पटेल गृहमंत्री रहते हुवे विदेशी मामलों पर पैनी नजर और निराली सूझ-बूझ रखते थे। कूटनीतिक दृष्टि से वह तिब्बत को भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानते थे। उन्होंने चीन के साम्राज्यवादी दृष्टिकोण एवं महत्वाकांक्षा के साथ चीन के षड्यंत्रों और कुचक्रों के प्रति नेहरू को आगाह किया था। 7 नवंबर 1950 को पटेल ने चीन के साम्राज्यवादी दृष्टिकोण, मनोवृत्ति और इतिहास का स्मरण दिलाते हुए प्रधानमंत्री को एक लम्बा पत्र लिखा था। उन्होंने इस महत्वपूर्ण पत्र में देश को चीन के कुचक्रों से सावधान करते हुए लिखा था कि-चीन महज़ कन्फ्यूसियस, लाओत्से और मेनसियस जैसे दार्शनिकों से ही अनुप्राणित नहीं होता है अपितु चीनी साम्राज्यवाद को चंगेज खान, हलाकु ख़ां और तैमूर जैसे आक्रमणकारियों से भी उर्जा मिलती हैं। चीनी साम्राज्यवाद का वैचारिक प्रसार वाद पश्चिमी साम्राज्यवाद से भी खौफनाक और खतरनाक है। चीनी साम्राज्यवाद की विस्तारवादी नीति को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी सैन्य शक्ति का परिवर्धन, संचार व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त और सरहदी चौकियों को मजबूत करना चाहिए। वर्मा के साथ बेहतर संबंध बनाना होगा जो चीन के विरुद्ध मजबूत आधार हो सकता हैं। इस ऐतिहासिक पत्र में सरदार पटेल ने नेपाल, भूटान और अन्य पड़ोसियों से बेहतर संबंध बनाने की वकालत किया था। संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन की वकालत करने के विषय पर पुनर्विचार करना चाहिए। इस ऐतिहासिक पत्र से पटेल की राजनीतिक दूरदर्शिता साफ-साफ झलकती है।

प्रायः बाहृय आक्रांताओं ने भारतीय जनमानस का मानमर्दन करने के लिए भारत के गौरवशाली प्रतीकों, ऐतिहासिक धरोहरों और प्रबल आस्था के केन्द्रों को ध्वस्त करने के साथ मूल्यों, मान्यताओं और संस्कृति को तहस-नहस किया। इस दिशा सोमनाथ के ध्वस्त मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर पटेल ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मजबूत किया। उत्कट देशभक्त, भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के अग्रिम क़तार के सेनानी, दृढ़ इच्छाशक्ति वाले, दूरदर्शिता से परिपूर्ण राजनेता पटेल का विशाल व्यक्तित्व भारत की भावी संततियो का मार्गदर्शन करता रहेगा।







मनोज कुमार सिंह 

लेखक, साहित्यकार, स्तम्भकार



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