भारत में बढ़ता कोचिंग संस्थानों का मायाजाल


भारत में जैसे ही किसी बच्चे का जन्म होता है ज्यादेतर परिवारों में यह देखने को मिलता है कि उनके माता-पिता का सपना होता है कि हमारा बेटा या तो डॉक्टर बनेगा या इंजीनियर। यह बहुत रोचक और आश्चर्यजनक मालूम होता ठीक उसी प्रकार से की बीज अभी खेत में डाली नहीं कि फ़सल से कितने रूपये कमा लेंगे इसके बारे में पूछताछ करने लगना। मेरे कहने का यह आशय है की पहले फ़सल को तो आ जाने दो तब आगे की सोचो लेकिन इस सोच के पीछे एक बहुत ही गहरा और चिंताभरा कारण जुड़ा हुआ है और वह है कोचिंग संस्थाओं द्वारा की गयी व्यापक रूप में मार्केटिंग जिसमें यह दिखाया जाता है की यदि कोई बच्चा बारहवीं उत्तीर्ण करने के बाद मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम या इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम नहीं निकाल पता है तो उसका जीवन बर्बाद है लेकिन सही मायनो में यदि कोई बच्चा अपने मन के विपरीत जाकर इन परीक्षायों की तैयारी नहीं करेगा तो उस बच्चे का जीवन तो नहीं बर्बाद होगा अपितु इन कोचिंग संस्थाओं को चलाकर अपनी दुकान चलाने वालों का धंधा बिल्कुल फीका पड़ जायेगा l मेरा यह कहने का बिलकुल भी आशय नहीं है की कोचिंग संस्थानों का होना अनुचित है लेकिन कहते है न की अति की भली न धूप अति का भला न छाँव यानी किसी भी चीज का अति नहीं होना चाहिए जैसे की एक दिया रौशनी भी दे सकती है लेकिन वही दिया आग में तब्दील होकर हाहाकार भी मचा सकती है। ठीक उसी प्रकार से इस वक़्त कोचिंग संस्थानों का दृश्य दिख रहा है। इन लोगों ने बच्चों को भरमानें की अति कर दी है। इन कोचिंग संचालकों का कहना है की ज़ब बच्चा अभी पाँचवी या छठी कक्षा में ही है तभी उसको पारमपरिक शिक्षा से वँचित करके उनके कोचिंग में उस बच्चे को भेज दिया जाए ताकि वो तथाकथित प्रतियोगी परीक्षा के हिसाब से अपने आप को ढाल ले। लेकिन यहाँ यह बात विचार करने योग्य है की क्या किसी मनुष्य से उसके स्वाभाविक जीवन को छिनना उचित है? एक ऐसा बच्चा जिसकी उम्र अभी खेलने कूदने की, अपने व्यक्तित्व का विकास करने की है, रिश्तों को समझने की है, समाजिक बनने की है, उस महत्वपूर्ण समय में उसको एक ऐसी दिशा में धकेला जा रहा है जहाँ मायूसी और अवसाद के अलावा उसे कुछ नहीं मिलेगा। हर कार्य करने का एक उचित समय और तरीका होता है अगर उसका ध्यान नहीं रखा गया तो उसके दुष्परिणाम बड़े भयावह हो सकते हैं इसी प्रकार प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने का भी एक उचित समय होता है ज़ब एक बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार हो और यह शारीरिक और मानसिक शक्ति उसको 6 से 12 कक्षा तक मिलती है जिसको यह कोचिंग संचालक अपनी पूरी बुद्धिमता का प्रदर्शन करते हुए छीनने का पूरा प्रयास करते हैं। भारत में कोटा शहर जो की राजस्थान राज्य में स्थित है सबसे बड़ा कोचिंग का केंद्र माना जाता है और हर बच्चे के अंदर ये भर दिया गया है की अगर तुम्हे जेईई या नीट की परीक्षा योग्य करनी है तो कोटा तो जाना ही पड़ेगा नहीं तो तुमसे नहीं हो पायेगा और यह बात विद्यालय के शिक्षक, अभिभावक, अलग-अलग सामाजिक संजाल स्थल पर देखने और सुनने को मिलता है जो की स्वाभाविक है क्यूंकि यही तो इनकी मार्केटिंग की रणनीति है जिसमें ये बेचारे मासूम बच्चे ठीक उसी प्रकार से फंस जाते हैं जैसे रोटी तो देखकर चूहा चूहेदानी के पिंजरे में फंस जाता है और इन बच्चों के लिए रोटी का काम करता है डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना। बच्चा बड़ी उमीदें लेकर अपनी घर से हज़ारों किलोमीटर दूर चल देता है एक सुदूर अंजान जगह अपने मन को समझता हुआ की कोई बात नहीं एक बार यह परीक्षा निकल जाए फिर पिता जी ने जितना भी कर्ज लिया है सब कमा कर चूका देंगे। आप लोग आश्चर्यचकित जरूर हुए होंगे की आखिर उसके पिता जी को कर्ज लेने की क्या जरूरत पड़ी तो मै बता दूँ की कोटा में कोचिंग की फीस 2 से 4 लाख तक होती है और रहने और खाने का 15 से 20 हज़ार प्रति माह जो की पूरी तरह से गलत और गैरकानूनी है। इनका धंधा यही नहीं रुकता अभी तो ये लोग डमी स्कूल के नाम पर भी लाखों रूपये वसूलते हैं। मेरे हिसाब से डमी स्कूलों का संचालित होना गैरकानूनी है क्यूंकि एक ही समय पर एक बच्चा कोचिंग में भी होता है और उसी समय पर उसको स्कूल में भी दिखाया जाता है। यहाँ सरकार का धर्म है की इस बात को गंभीरता से ले और इसपर उचित न्यायिक कार्यवाही करें।

ज़ब बच्चा पूरी हर्षो उल्लास के साथ उस कोचिंग में जाता है तो कुछ ही दिन बाद ज्यादेतर बच्चों को अलग कर दिया जाता है और कुछ गिने चुने बच्चों का एक रैंकर बैच बनाया जाता है जिसको हर एक सुविधा दी जाती है वहीं दूसरी तरफ बाकी बच्चों को बस नाम के लिए पढ़ाया जाता है अब ये बच्चे इस कोचिंग के लिए बस बैंकर बन कर रह जाते हैं और ज़ब उस बच्चे को कोचिंग द्वारा दिखाए गए सपनों के बिल्कुल एक विपरीत सा माहौल मिलता है तो वह अवसाद जैसी स्थिति में चला जाता है जिससे बाहर निकलना मानो नामुमकिन सा है। हम हर रोज़ यह सुनते और पढ़ते हैं की फलाने जगह का लड़का कोटा तैयारी करने गया था लेकिन कुछ महीने बाद ही उसने आत्महत्या कर ली जिसको सुनने के बाद बड़ा दुख होता है। अब यहाँ प्रश्न इस बात का है की इसका उपाय क्या है आखिर कैसे हम इन चीज़ों को रोक सकते हैं? इसका एक सामान्य उपाय हो सकता है की बच्चों को कोचिंग भेजें ही न लेकिन यह उपाय जमीनी और टिकाऊ नहीं दीखता। तो आखिर इस जटिल समस्या जो कैंसर जैसी बड़ी बीमारी से भी ज्यादे भयानक है का क्या समाधान हो सकता है। मेरे अनुसार इसका उपाय हमारे बीच आ चूका है और वह है ऑनलाइन प्लेटफार्म पर पढ़ाई जो की सस्ती भी है और इसमें बच्चा साथ में विद्यालय भी जा सकता है और प्रतिस्पर्धी परीक्षायों की तैयारी के लिए ऑनलाइन मदद ले सकता है।

लेकिन हमारे बीच ऐसा भ्रम फैला दिया गया है की ऑनलाइन प्लेटफार्म पे पढ़ाई नहीं होती और उससे बच्चे इन परीक्षाओं को पास नहीं कर पाते जो की बिल्कुल गलत और बेबुनियाद है। अब तो इन प्लेटफार्मो पर वो अध्यापक पढ़ा रहे हैं जिनकी कक्षा में जाने से पहले 2-3 लाख रूपये फीस देनी पड़ती थी। कोविड-19 के बाद जिस तरह ऑनलाइन एजुकेशन में क्रांति आयी है उससे बहुत हद तक सुधार हुआ है। बीते 2024 नीट और जेईई की परीक्षा में ज्यादेतर चयनित छात्र ऑनलाइन माध्यम से ही पढ़कर आए थे। मै अपना उदहारण दूँ तो मैंने कभी ऑफलाइन कोचिंग का मुँह नहीं देखा लेकिन ऑनलाइन माध्यम से मदद लेकर एवं स्व अध्ययन करके अपने पहले प्रयास में ही नीट में 650 अंक प्राप्त किये और सरकारी एमबीबीएस सीट प्राप्त की। मेरा यह बताने का इतना ही आशय है की सिलेक्शन कहीं से भी हो सकता है उसके लिए इतने रूपये खर्च करने की और कोचिंग माफियाओं द्वारा मकड़ी की जाल जैसे बिछाये फंदे में फसने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रभाव नारायण राय ✍️
एमबीबीएस प्रथम वर्ष छात्र
घोसी, मऊ उत्तर प्रदेश।



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