स्वप्न का परिवेश गढ़़ दो


मौन करुणा के इशारे 

में लिखा सन्देश पढ़ दो 

स्वप्न में आया हुआ जो 

वह नया परिवेश गढ़़ दो 


मील के पत्थर लिखे हैं 

काल ने ख़ुद लेखनी से

माप बाकी है न कोई 

नियति की निज मापनी से


छोड़ दे जो रक्तपथ को 

एक ऐसा देश गढ़़ दो 

स्वप्न में आया हुआ जो 

वह नया परिवेश गढ़़ दो


स्वार्थ-कुण्डों में बनी 

आज-आहुति मानवी है

आचमन में ही चतुर्दिक

 रक्त-पीती दानवी है


नेह-बूंदों से भरा बस

एक बादल ही पकड़ लो

स्वप्न में आया हुआ जो 

वह नया परिवेश गढ़़ दो


तृषित मन की कामना के

 मोह-बन्धन खोलना है 

 उत्सर्ग की निज भावना 

 निर्लिप्त होकर तोलना है 


भाग्यवादी-चक्षुओं को 

कर्म पथ से ही जकड़ दो

स्वप्न में आया हुआ जो 

वह नया परिवेश गढ़़ दो 


डॉ0 भगवान प्रसाद उपाध्याय 

पत्रकार भवन, गंधियांव, 

 करछना, प्रयागराज उ०प्र०



    

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