योगीराज कृष्ण का हर स्वरूप ज्ञान, भक्ति और कर्म का संगम है

मीरा के गिरधर नागर, राधा के मुरली मनोहर, सूरदास, रसखान और ब्रजभाषा के अनेकानेक कवियों के नटखट श्याम और यशोदा के कान्हा, लीलाधारी नन्द लाल, दीन-हीन सुदामा के बालसखा और गांडीव धारी अर्जुन के सारथि इत्यादि विविध रूपों में वर्णित भारतीय सभ्यता और संस्कृति के उन्नायक, पथ प्रदर्शक भगवान श्रीकृष्ण को भारतीय जनमानस बडी श्रद्धा से उनके जन्मोत्सव पर स्मरण करता है। द्वापर के महानायक योगीराज भगवान श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व, कृतित्व और विविध रूपों में उनकी लीलाऐं सदियो से भारतीय ज्ञान, दर्शन, आध्यात्म और साहित्य का केन्द्रीय विषय-वस्तु रहीं हैं। योगिराज कृष्ण का बहुरंगी, बहुआयामी और रहस्यमई व्यक्तित्व भारतीय बसुंधरा के अनगिनत साहित्यकारो, दार्शनिको और चिंतकों की साधना का विषय रहा है। त्रेता युग के महानायक मर्यादा पुरुषोत्तम राम जहाँ धीर गंभीर सौम्य्ता की प्रतिमूर्ति के रूप नजर आते हैं वही योगीराज श्री कृष्ण नटखट, चंचल और लीलाधारी नजर आते हैं। इसलिए यशोदा के नंदलाला से लेकर द्वारिकाधीश बनने तक का भगवान श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण जीवन वृत्त बहुरंगी नजर आता है। योगीराज का ग्वाल बालों के साथ हँसी-ठिठोली से परिपूर्ण संबंध और गोपियों के साथ अठखेलियां करता बालपन पूरी तरह से नटखटपने का द्योतक हैं। भगवान श्रीकृष्ण के नटखट और मनमोहक बालपन का आगरा के अंधे पर अद्वितीय दिव्य दृष्टि वाले कवि सूरदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अनुपम वर्णन किया है। रिझाने-खीझाने और मनाने का माॅ यशोदा और पुत्र के साथ खट्टी मीठी शरारत भरी अनुभूतियों को महाकवि सूरदास ने बडे ही मनोहारी और अद्भुत तरीके से अपनी रचनाओं में परोसा हैं। मैया यशोदा और नटखट कन्हैया के रिश्तों को आधार बनाकर जो वात्सल्य सूरदास ने अपनी रचनाओं में परोसा हैं वह अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता है। सूरदास की रचनाओं में वात्सल्य रस अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच जाता हैं।


भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप में जो डूबन और उतरन महाकवि सूरदास की रचनाओं में दिखाई देती हैं वही डूबन और उतरन सैयद इब्राहीम रसखान की रचनाओं में भी दिखाई देती हैं। धूल और माटी से खेलते नटखट श्याम के दृश्य का साहित्यिक श्रृंगार जो सैयद इब्राहीम रसखान ने किया है वह अनुपम हैं। 

धूल धरे अति सोहत श्याम,  

पग पैजनी बाजत पीर पछोटी 

काग के भाग बडे सजनी 

हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी।

सैयद इब्राहीम रसखान के अतिरिक्त महकवि बिहारी ने भी कृष्ण के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अनेक अद्भुत रचनाएँ प्रस्तुत की है। बिहारी की रचनाओं में श्रृंगार रस, प्रणय निवेदन, बिरह-वियोग और पवित्र प्रेम चरमोत्कर्ष पर दिग्दर्शित होता हैं।

श्रीकृष्ण अपनी बांसुरी की सुमधुर स्वरलहरियों से अपनी प्रेयसी राधा को रिझाने का प्रयास करते हैं और प्रेयसी राधा सम्पूर्ण श्रृंगार करके अपने कृष्ण को अपनी तरफ खींचने का प्रयास करती है। भारतीय आध्यात्मिक परम्परा और भारतीय साहित्य में राधिका का उत्कट प्रेम आज भी अजर अमर और साहित्यिक कौतूहल और मीमांसा का विषय हैं। राधा की तरह मीराबाई के व्यथित हृदय में भी  कृष्ण को पाने की उत्कट अभिलाषा है 

परन्तु राधा के विपरीत मीराबाई की कृष्ण को पाने की तडप, बेचैनी और दीवानगी विशुद्ध अलौकिक और आध्यात्मिक हैं । कम उम्र में ही वैध्यवता का शिकार और राजमहल से तिरस्कार ने महारानी मीरा को दासी मीराबाई बना दिया। मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के सुप्रसिद्ध संत रैदास की शिष्या मीराबाई ने भगवान कृष्ण की निर्मल निश्छल निर्भीक नि:स्वार्थ और अलौकिक दीवानगी में हृदय के जो उद्गार व्यक्त किये वह भारतीय भक्ति साहित्य की अनमोल धरोहर बन गए। 

मीराबाई के गिरधर नागर भारतीय इतिहास के सर्वाधिक भीषणतम युद्ध महाभारत के युद्ध में एक सर्वश्रेष्ठ उपदेशक के रूप में नजर आते हैं। कुरूक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने जो उपदेश दिया वह श्रीमद भागवत गीता के रूप में  सम्पूर्ण भारतीय जनमानस में जीवन चरित्र का सारतत्व और जनमानस का पथ प्रदर्शक बन गया। 

आज कृष्ण के जन्मोत्सव पर सम्पूर्ण भारतीय बसुन्धरा ब्रजधाम के रूप में अपना श्रृंगार कर चुकी हैं और समस्त भारतवासी स्वयं को ब्रजवासी महसूस कर रहे हैं।



मनोज कुमार सिंह ✍️

लेखक/साहित्यकार/स्तम्भकार

जमालपुर मिर्जापुर कस्बा ख़ास घोसी, मऊ (उ.प्र.) 




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