हेल्थ इंश्योरेंस की छुपी शर्तों को पहचानिए


एक तकनीकी डोमेन और एक लीगल कान्ट्रैक्ट होने के नाते, अधिकांश लोगों के लिए बीमा की शर्तों को समझना बहुत मुश्किल होता है। इसके अलावा, बात जब इन्श्योरेन्स कान्ट्रैक्ट की आती है तो नियमों, शर्तों और बीमा से जुड़े शब्दों का मकड़जाल एक आम आदमी के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसी बात हो जाती है। यह बीमा के बारे में जागरूकता पैदा करने में एक बाधा के रूप में बन गया है।

हम आपको हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़े यहां कुछ ऐसे शब्दों के बारे में खुलासा कर रहे हैं जिनके बारे में आपको अवश्य जानना चाहिए ताकि आप इन्श्योरेन्स को लेकर एक बेहतर फैसला ले सकें।

स्वास्थ्य बीमा का शब्द जाल :-

सह-भुगतान या को-पेमेंट : सह-भुगतान या को-पेमेंट, बीमित और बीमाकर्ता के बीच दावा राशि के पूर्व-निर्धारित प्रतिशत (pre-defined percentage) को साझा करने के विकल्प को बताता है। इस विकल्प का प्रयोग करने से स्वास्थ्य योजना खरीदते समय प्रीमियम कम करने में मदद मिलती है। एक सहभुगतान बीमाकर्ता की देयता को प्रतिबंधित करता है क्योंकि बीमित व्यक्ति अपनी जेब से कुल दावा राशि का कुछ प्रतिशत हिस्सा खुद वहन करने के लिए सहमत होता है। उदाहरण के लिए, यदि आप 20% के सह-भुगतान से सहमत हैं, तो 1 लाख रुपये के दावे के मामले में आपको अपनी जेब से 20,000 रुपये (20%) की राशि खुद वहन करनी होगी जबकि बीमाकर्ता 80,000 रुपये की शेष राशि का ख्याल रखेगा।

कटौती या डिडक्टीबल : डिडक्टीबल या कटौती एक स्पेसिफिक राशि होती है जिसके तहत बीमाधारक को स्वास्थ्य बीमा योजना अमल में आने से पहले के खर्च को वहन करने को बताता है। प्रत्येक पॉलिसी में स्वैच्छिक कटौती का एक कम्पोनन्ट होता है। चूंकि यह व्यवस्था बीमाकर्ता को उनके दायित्व के एक हिस्से से राहत देती है, इसलिए प्रीमियम कम करने में सहायक होता है। डिडक्टीबल जितना ज्यादा होता है, प्रीमियम उतना ही कम होता है।

उदाहरण के लिए, यदि आपने अपनी पॉलिसी में 10,000 रुपये की कटौती या डिडक्टीबल का विकल्प चुना है, तो 1 लाख रुपये के दावे के मामले में आपको पहले 10,000 रुपये पहले खुद वहन करना होगा जबकि बाकी 90,000 रुपये की राशि आपके बीमाकर्ता द्वारा ध्यान रखा जाएगा। यदि दावा राशि 10,000 रुपये से नीचे है तो ग्राहक को ही पूरा खर्च वहन करना होगा।

डे केयर ट्रीटमेंट : ये अस्पताल या डे केयर सेंटर में जनरल या लोकल अनेस्थेसिया के तहत 24 घंटे से कम समय के लिए अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति मे किए गए चिकित्सा उपचार या शल्य चिकित्सा की प्रक्रियाओं से संबंधित होता है। यह ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है कि डे केयर ट्रीटमेंट में ओपीडी शामिल नहीं हैं। कुछ सामान्य डे केयर ट्रीटमेंट में मोतियाबिंद सर्जरी, कोरोनरी एंजियोग्राफी, कीमो थेरेपी, डायलिसिस, आदि शामिल किए जाते हैं। डे केयर प्रक्रियाओं की एक पूरी लिस्ट आपके बीमाकर्ता से अनुरोध की जा सकती है और यह इरदाई के वेबसाइट पर भी उपलब्ध है।

संचयी बोनस ( क्यूमूलेटिव बोनस या सीबी) : हर दावा मुक्त वर्ष (claim free year) में बीमाकर्ता प्रीमियम में बिना किसी वृद्धि के अगले साल में ज्यादा सम अशुर्ड अर्जित करता है। पहले दावे मुक्त वर्ष में बीमित राशि में 5% की वृद्धि होती हुई है और हर साल क्लेम फ्री यीयर्स में के बाद रिनूवल में सम अशुर्ड 10% बढ़ता रहता है और यह अधिकतम 50% हो जाता है। आजकल अब तो ऐसे प्रोडक्ट हैं 100% का सम-अशुर्ड ऑफर कर रहे हैं।

ग्रेस पीरियड : यदि आप समय पर अपने बीमा प्रीमियम का भुगतान करना भूल जाते हैं, तो बीमाकर्ता आपको भुगतान करने के लिए अतिरिक्त 30 दिन प्रदान करते हैं। हालांकि आप इस लैप्स समय अवधि के दौरान कवर नहीं किया जाएंगे, पर यदि एक बार आप प्रीमियम का भुगतान कर देते हैं तो पॉलिसी बहाल कर दी जाती है और इसके तहत सभी लाभों के साथ बरकरार रखा जाता है। इस पीरीअड क्लॉज़ में एक ब्रेक के रूप में कहा जाता है, इस अवधि के दौरान उत्पन्न होने वाले क्लेम दावे स्वीकार्य नहीं होते हैं।

अस्पताल में भर्ती होने से पहले और बाद के चिकित्सा खर्च : डायग्नोस्टिक टेस्ट, कंसल्टेशन आदि में अस्पताल में भर्ती होने से पहले किए गए खर्चों को अस्पताल में भर्ती पूर्व चिकित्सा व्यय (pre-hospitalization medical expenses) के रूप में जाना जाता है। अस्पताल में भर्ती होने के बाद किए गए खर्च को अस्पताल में भर्ती होने के बाद के चिकित्सा (post-hospitalization medical expenses) खर्च के रूप में जाना जाता है, जिसमें फॉलो-अप दवाएं, परीक्षण, फिजियोथेरेपी, डायलिसिस, कीमो उपचार आदि शामिल होते हैं। अस्पताल में भर्ती होने से पहले 30 से 60 दिन की अवधि प्री-हॉस्पिटलाईजेशन जबकि अस्पताल में भर्ती के 90 से 180 दिन की अवधि पोस्ट-हॉस्पिटलाईजेशन की मानी जाती है।

व्यक्तिगत दुर्घटना : पर्सनल एक्सीडेंट पॉलिसी वे बेनेफिट पॉलिसी होती हैं जो किसी भी दुर्घटना से संबंधित विकलांगता या मृत्यु के मामले में एकमुश्त राशि का भुगतान करती हैं।

कुल स्थायी विकलांगता (पर्मानेंट टोटल डिसअबिलिटी या पीटीडी) : जब कोई बीमित व्यक्ति अपने व्यवसाय की जिम्मेदारियों को जारी रखने में असमर्थ होता है या जब उसके दोनों हाथों और पैरों को कुछ इस तरह का शारीरिक नुकसान पहुँचता है कि स्थाई रूप से विकलांगता के कारण वह काम कर रोजी रोटी चलाने में असमर्थ होता है, तो इस तरह से क्लेम को पीटीडी कहा जाता है।

आंशिक स्थायी विकलांगता या पीपीडी : यह आम तौर पर एक विकलांगता के रूप में कहा जाता है जिसमें बीमित व्यक्ति को उनके व्यवसाय के एक या एक से अधिक कार्य करने में मुश्किल आती है, लेकिन वह किसी तरह से दूसरा काम कर सकता है। हालांकि, यहां भी एक अंग या अंग का नुकसान अपरिवर्तनीय (irreversible) है। पीपीडी के उदाहरणों में एक हाथ या एक पैर या एक आंख या एक उंगली आदि का नुकसान माना जाता है।

अस्थायी कुल विकलांगता या टीटीडी : जब कोई चोट से ग्रस्त होता है और अस्थायी रूप से अक्षम हो जाता है लेकिन उपचार के बाद चोट या दुर्घटना से पहले स्वास्थ्य की सामान्य स्थिति में वापस आता है, तो इसे टीटीडी कहा जाता है। यहां हाथ या पैर में चोट लगने या कटने की स्थिति में भी वह बाद में ठीक हो जाता है।

फ्री लुक पीरियड : फ्री लुक पीरियड पॉलिसी डॉक्युमेंट की प्राप्ति की तारीख से 15 दिन की अवधि है, जो हर नए स्वास्थ्य बीमा या व्यक्तिगत दुर्घटना पॉलिसी धारक को दी जाती है। इस समय के दौरान आप फिर से विश्लेषण कर सकते हैं कि क्या कोई विशेष योजना आपके लिए उपयुक्त है या नहीं। इन निर्धारित 15 दिनों के भीतर यदि आपको पॉलिसी ठीक नहीं लगती है, तो इसे रद्द किया जा सकता है और प्रीमियम वापस कर दिया जाएगा। हालांकि, कवर किए जाने की सूरत में बीमाकर्ता आपसे प्रशासनिक खर्चों के लिए शुल्क लेगा। 

श्री भास्कर नेरुरकर ✍️

हेड, हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन टीम 

बजाज आलियांज़ जनरल इंश्योरेंस।



Comments