बलिया। किसी भी रूप में राम का स्मरण या दर्शन लोगों का हृदय परिवर्तन कर देता है। फिल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर जी की लंबी अवधि वाले सविस्तार रामायण धारावाहिक को आशाशीत सफलता मिली थी। उस समय केबल कनेक्शन या विभिन्न चैनल नहीं थे। दूरदर्शन (DD-1) ही था। 25 जनवरी 1987 से 31 जुलाई 1988 तक प्रत्येक रविवार को अनवरत प्रातः 9:30 बजे से प्रसारित रामायण ने संपूर्ण भारत में धूम मचा दी थी। बाल्मीकि रामायण व तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर आधारित इसके प्रसारण से टीवी के विक्रय में भी जबरदस्त उछाल आया था।
शिक्षक और साहित्यकार डॉ नवचंद्र तिवारी आगे बताते हैं। उस समय मेरे गांव में दो ही लोगों के पास टीवी था। अतः पड़ोसी बंधु के यहां टीवी के सामने रविवार को रामायण देखने हेतु अच्छी खासी भीड़ एकत्र हो जाती थी। महिलाएं तो स्क्रीन पर राम के चरित्र (किरदार) को देखते ही अगरबत्ती दिखाती थीं। आरती तक उतारतीं। महसूस होता जैसे सब कुछ जीवंत चल रहा है। समग्र वातावरण ही आस्थायुक्त होकर राममय हो जाता। रामायण के मर्यादा पुरुषोत्तम राम व आदर्श पात्रों का प्रभाव आम जनमानस पर भी पड़ा। रामायण देखने के कारण सड़के तक सूनी हो जाती थीं। इस धारावाहिक से लोगों की संस्कारों में भी सकारात्मक पहलू और बढ़कर दिखाई देने लगा था। कोरोना कल के समय भी DD-1 पर रामायण का प्रसारण पुन: हुआ था। आज भी इस धारावाहिक का जवाब नहीं है।
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