गम नहीं होता गर वो मार भी देता,
कत्ल कर गया मेरा वो दुआ देकर।
मैं क्या बयाॅ करूॅ नादानी अपनी,
वो लूट गया मुझको इत्तला देकर।
मैं कैसे बयाॅ करूॅ गद्दारी उसकी,
वो मार गया मुझको दवा देकर।
न जाने कैसै जाल में उसके मै फँस गया,
चला गया वो मुझे छोड़ कर दगा देकर।
जेहन में मेरे ऐसी तो कोई बात नहीं थी,
लगा गया जिगर में आग वो हवा देकर।
जमीर उसका भी जागेगा जरूर किसी रोज,
चला गया जो बे-वजह मुझे सजा देकर।
खैरियत तो पूछने आये थे बहुत लोग,
चले गये मुझे सभी वो मसविरा देकर।
कुछ फासले जरूर रखिऐ रिश्तों के दरम्याॅ,
दगा दे जाते है अक्सर खुदा का वास्ता देकर।
विद्यानंद ✍️
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