बलिया। नगर से सटे परिखरा स्थित बाबा परमहंस नाथ मंदिर के प्रांगण में श्री शिव महापुराण कथा के पांचवे दिन काशी से पधारे शशिकांत जी महाराज ने कथा सुनाते हुए कहा कि आप पूरी दुनिया को ना जीत पाए, पर यदि आपने घर में बैठे मां बाप के हृदय को जीत लिया तो यह जीत आपकी सबसे बड़ी जीत है। क्योंकि माता-पिता ही देवता है।
बताया कि जब भगवान कार्तिकेय धरती की परिक्रमा करने गए, जबकि भगवान श्री गणेश ने माता पिता की ही परिक्रमा की और उसके फलस्वरूप रिद्धि और सिद्धि से उनका विवाह हुआ। महाराज जी ने कहा कि जब भगवान कार्तिकेय रुष्ट होकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। तब भगवान शंकर और माता पार्वती माली और मालिन का रूप बनाकर उन्हें मनाने गए। भगवान शंकर ने अपना नाम अर्जुन रखा और माता पार्वती ने अपना नाम मल्लिका रखा। आज भी मल्लिकार्जुन के रूप में भगवान शंकर और माता पार्वती वहां विराजमान हैं।
कहा कि हर अमावस्या को भगवान शिव और प्रत्येक पूर्णिमा को माता पार्वती अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए वहां जाती हैं। महराज जी ने कहा कि एक बार भगवान शिव ने इंद्र पर क्रोध किया और इंद्र के क्षमा मांगने पर अपने क्रोध की अग्नि को तीसरे नेत्र से समुद्र में फेंक दिया। जिससे जलंधर का जन्म हुआ। जलंधर की पत्नी सती वृंदा परम पतिव्रता थी। वहीं जलंधर महापापी था। सती वृंदा के कारण ही कोई भी देवता जालंधर का वध नहीं कर पा रहे थे। भगवान विष्णु ने सती वृंदा का सतीत्व भंग करके जालंधर का वध करवाया।
इससे क्रोधित हुई सती वृंदा ने भगवान शंकर को काला पत्थर बनने का श्राप दिया। जो आज भी हमारे बीच में शालिग्राम भगवान के रूप में विराजमान हैं। वहीं सती वृंदा तुलसी के रूप में विराजमान है। बताया कि जब तक भगवान श्री हरि के प्रसाद में तुलसी का पत्र समर्पित ना किया जाए तब तक भगवान श्री हरि प्रसाद को स्वीकार नहीं करते। यह वरदान भगवान विष्णु ने सती वृंदा को दिया था।
इस दौरान आत्मा सिंह, प्रधान रामप्रवेश बर्मा, मोहन सिंह, दिलीप सिंह, सुबाष बर्मा, मुन्ना सिंह, पूर्व प्रधान मनोज पासवान, श्रीकांत, राजेश व मनोन बर्मा सहित हजारो श्रोतागण रहे।
साभार - पूर्वांचल24
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