एक बेटी की कलम से ......!!
क्यों रोई थी मैं .......!!
बेटी के रुप में जन्म लिया था इसलिए .....!!
बेटी पराया धन हैं ये सून कर बड़ी हुई .....!!
शादी के बाद मायका अपना नहीं रहता ....!!
क्यों रोई थी मैं ....!!
मायके जाने पर सब पूछते हैं .....!!
कितने दिन रुकना है ......!!
बहुत दिन बाद आई हो .....!!
कूछ दिन तो रहोगी ना .....!!
क्यों नहीं कोई कहता ये भी तेरा घर हैं .....!!
तू यही पली बड़ी हुई हैं ........!!
गला रूंध जाता हैं आँखें भर आती हैं ....!!
होठ सील जाते हैं लफ्ज़ नहीं मिलते .....!!
क्यों रोई थी मै .......!!
मायके से विदा हो रही थी .....!!
कोई नही पुछ रहा था कब आयेगी ....!!
रुक जा ये तेरा घर हैं .....!!
तू नहीं रहती त हम उदास रहते है .....!!
जिस आँगन के खेल कर बड़ी हुई थी ...!!
उस आंगन की मेहमान बन गयी .....!!
क्यों रोई थी मै .....!!
माँ-बाप दूर जा रही थी ......!!
आँखें क्यों भर आई थी .......!!
क्या था जो रोक भी रहा था ....!!
कदमों की चाल थम-थम कर ....!!
सामान ला कर बाहर रख दिया गया था ....!!
जैसे मै इस आंगन के लिए पराया थी..........!!
एक एक सामान ठीक है रख लेना .......!!
हर बार कुछ ना कुछ छूट जाता हैं ........!!
माँ सहेज कर रखती हैं ......!!
और रुंधे गले से बोलती हैं ......!!
क्यों रोई थी मै ....!!
सबकी आँखें भरी थी .......!!
मैं भी फुट-फुट कर रोई थी ......!!
पंख नहीं होते बेटियों की .......!!
फिर भी उड़ जाया करती हैं बेटियाँ ....!!
मीना सिंह राठौर ✍️
नोएडा, उत्तर प्रदेश।
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