जीवन के हर पहलू से जुड़ी सभी महिलाओं का हर दिन "महिला दिवस"


इनकी शान में कुछ बातें

*परवेज़ अख़्तर* की✍️से

लड़कियों पर फब्तियां कसना,,,

मजबूरी वश बाहर निकल रही महिलाओं पर फालतू कमेंट्स पास करना,,,,,

नौकरीपेशा औरतों को ख़राब नज़रिए से देखना,,,,,

मर्दों के मुकाबले औरतों को कमज़ोर समझना,,,,,,

इनकी इज्ज़त से खेलना

इनकी जान से खिलवाड़ करना,,,,

ये सब करना तो आसान है,

पर बहुत गहराई से इन महिलाओं की मनोदशा को समझना

इनके त्याग और कुर्बानियों को व इनकी सहनशक्ति को समझना बहुत मुश्किल है!

ये जब मासूम बच्ची होती हैं तो इनकी चंचलता से पूरे घर में रौनक होती है,

होश सम्हालते ही लड़कों के मुकाबले मां बाप के लिए कहीं ज़्यादा फिक्रमंद होती हैं,,

ये जब किशोर अवस्था में होती हैं, तो तमाम पाबंदियों के बाद भी लड़कों के मुकाबले परफार्मेंस में कहीं ज़्यादा आगे होती हैं,, 

शादी हो जाने के बाद

दूसरे के घर को सम्हालने के लिए अपने घर आंगन को और अपनो को छोड़ कर चली जाती हैं।

और एक नई जिम्मेदारी को उठाते उठाते एक वक्त ऐसा भी आता है जब 54 % हड्डियों के टूटने के बराबर तकलीफ को बर्दाश्त करते हुए मौत के मुहाने तक जा कर बच्चे को जन्म देती हैं,

जबकि पुरुष की बर्दाश्त की हद 42 % तक ही है, इसके बाद उनकी मौत भी हो सकती है।

बच्चे को नौ माह पेट में रखकर तमाम मुसीबतें उठा कर बच्चे के पैदा होने के बाद तक जो एक महिला कर लेती है , (पुरुष उन तकलीफों का एहसास ही नहीं कर सकते हैं

बल्कि गहराई से तसव्वुर कर लें तो पुरुष बेहोश भी हो सकते हैं)

इसके बाद यही महिला एक मां के रूप में उस हक़ को अदा करती हैं, जिसको दुनिया का कोई भी रिश्ता अदा नहीं कर सकता।

बहरहाल महिलाओं में ढेर सारी खूबियों के बाद जहां मुसलमानों में औरतों व बच्चियों को रहमत और बरकत समझा जाता है!

तो वहीं हिंदुओं में डायरेक्ट बच्चियों व महिलाओं को देवी समझा जाता है बल्कि इनकी पूजा भी की जाती है।

इन महिलाओं के योगदान और त्याग भावना की वजह से ऐसी हस्तियों पर कुछ भी लिखना सूरज को चिराग़ दिखाने जैसा होगा।

बेटी बहन बीवी और मां जिनके बगैर ज़िंदगी का कोई वजूद है ही नहीं।

इनको भले ही रौनक ना समझा जाए बरकत ना समझा जाए, देवी ना समझा जाए, फॉर्मेल्टी अदा करने के लिए मुबारकबाद ना दिया जाए,

पर इनके जज़्बात का ख़्याल रखते हुए इनको मान सम्मान दिया जाए, और इनकी जान और इनकी आबरू से ना खेला जाए।।

और अब तो वैसे भी महिलाऐं पुरुषों वाले काम में भी पीछे नहीं हैं, क्यों की ये स्कूटी चलाने से लेकर ट्रेन तक चला रही हैं, किचन में धुंआ उड़ाने से लेकर जहाज़ तक उड़ा रही हैं, सब्ज़ी वाले से लड़ने से लेकर बॉर्डर पर दुशमनों तक से लड़ रही हैं। राजनीति में पुलिस फ़ोर्स में और शासन प्रशासन में रह कर देश की दशा और दिशा तय कर रही हैं।

इसलिए मैं इतना ही कहना चाहुंगा कि सिर्फ़ 8 मार्च को ही महिला दिवस कहना सही ना होगा

इनका दिवस हर दिन का है,

पर फिर भी बात मुबारकबाद की है तो दुनिया की हर महिलाओं को

8 मार्च अंतरराष्ट्रीय ((महिला दिवस)) की हार्दिक शुभकामनाएं और

दिली मुबारकबाद।

परवेज़ अख़्तर पत्रकार 

Comments