बलिया। अमरनाथ मिश्र पी०जी० कालेज दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य एवं जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के पूर्व शैक्षणिक निदेशक पर्यावरणविद् डा० गणेश पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि प्रति वर्ष शीतलहर का प्रकोप कमोवेश अवश्य रहता है, किंतु जब इसकी प्रबलता अधिक हो जाती है तो यह शीतलहर बेहद घातक हो जाता है। इस संदर्भ में डा० पाठक ने बताया कि अब मौसम का मिजाज यों बदलता-बिगड़ता रहेगा और अब जो भी बदलाव होंगें,अत्यन्त घातक होगें, कारण कि उनकी प्रबलता एवं प्रभावशीलता अधिक होगी, जिसका महत्वपूर्ण कारण जलवायु परिवर्तन का होना है, जिसका घातक प्रभाव मौसम पर भी प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित होने लगा है। डा० पाठक ने बताया कि इस दौरान बलिया एवं पूर्वांचल सहित पूरे मैदानी क्षेत्र में शीतलहर का जो भयंकर प्रकोप जारी है, उसका दो मुख्य कारण है-पहला कुहरा एवं दसरा पश्चिमी विक्षोभ का बार-बार आना।
कैसे उत्पन्न होती है शीतलहर :
डा० पाठक का कहना है कि जब किसी क्षेत्र में कुछ दिन एवं कुछ सप्ताहों तक तापमान के औसत सामान्य तापमान से अत्यधिक नीचे बना रहता है तो भयंकर ठंढक पड़़ने लगती है और इस दौरान हवा में यदि प्रवाह धीमा भी रहता है तो वह वायु प्रवाह कठोर ठंढक अर्थात् अत्यधिक शीत से मिलकर 'शीतलहर' का रूप धारण कर लेता है। यदि हवा प्रवाहित न भी हो तो भी भयंकर ठंढक के कारण शीतलहर का प्रकोप जारी हो जाता है। भौगोलिक स्थिति एवं समय के अनुसार शीतलहर के लिए तापमान का माप बदलता रहता है। शीत क्षेत्र एवं मैदानी क्षेत्रों के मानक में अन्तर रहता है। मैदानी क्षेत्र के तापमान का मानक शीत क्षेत्र के मानक से कम होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि 'शीतलहर' एक प्रदेश विशेष की मौसमी परिघटना है जो संबंधित क्षेत्र की भौगोलिक दशाओं पर निर्भर होती है। इस प्रकार किसी क्षेत्र के औसत न्यूनतम तापान में जब इतनी भारी गिरावट हो जाती है कि इतने अधिक कठोर ठंढ हेतु तैयार न रहने वाले लोगों एवं पशुओं पर या सम्पत्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो उसे "शीतलहर" कहा जाता है। इस तरह 24 घंटे की अवधि में तापमान के गिरावट की दशा को ही "शीतलहर" कहा जाता है।
कुहरा से बढ़ जाती है शीतलहर की प्रबलता :
डा० पाठक के अनुसार कुहरा शीतलहर को बढ़ाने में अहम् भूमिका निभाता है। कारण कि सघन कुहरा के कारण सूर्य की किरणें धरती पर नहीं आ पाती है,जिससे वायुमंडल एवं धरातल के तापमान में और अधिक कमी आ जाती है,जिससे शीतलहर का प्रभाव बढ़ जाता है। डा० पाठक का कहना है कि सामान्यतः जब धरातल के निकट आर्द्रतापूर्ण वायु की परतों में शीतलन के कारण संघनन की प्रक्रिया होने लगती है तो वायु में जल के अत्यन्त सूक्ष्म कण बन जाते हैं। वायुमंडल में इन्हीं जल कणों अथवा हिम कणों के असंख्य सूक्ष्म कणों के उपस्थिति के फलस्वरुप जब उसकी पारदर्शिता एक किलोमीटर से कम हो जाती है तो उसे "कुहरा" टहा जाता है। इस तरह धरातल के निकट की अत्यधिक नम वायु में रात के शीतलन के कारण जब संघनन की क्रिया शुरू हो जाती है तो कुहरे की उत्पत्ति होती है।
पश्चिमी विक्षोभ भी बढ़ाता है शीतलहर का प्रभाव :
डा० पाठक का कहना है कि शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभ का बार-बार आना एवं पहाड़ों पर होने वाली बर्फबारी भी शीतलहर के प्रभाव को बढ़ा देता है, कारण कि जाड़े के दिनों में प्रवाहित होने वाली पश्चिमी वायु शीत प्रदेशों से होकर आने वाली अति ठंढी वायु होती है और वह वायु जब पहाड़ों पर होने वाली बर्फबारी के क्षेत्र से होकर आती है तो और शीतल हो जाती है और जब यह अति शीतल पश्चिमी शवायु भारत के मैदानों क्षेत्रों से होती हुई पूर्वांचल के जिलों सहित बलिया तक पहुँचती है तो पूरे क्षेत्र में ठिठुरन पैदा कर देती है और पश्चिमी हवा के साथ मिलकर यह ठिठुरन भयंकर शीतलहर का रूप धारण कर लेती है, जैसा कि आज कल शीतलहर का प्रकोप इतना जारी है कि तापमान 5-6 डिग्री सेल्सियस तक आ गया है और अगर ऐसी ही स्थिति चलती रही तो तापमान दो-तीन डिग्री सेल्सियस तक भी जा सकता है।
मौसम विभाग से जारी सुचनानुसार उत्तरी भारत में 18 से 28 जनवरी के मध्य रूक-रूक कर तीन बार पश्चिमी विक्षोभ आने की सम्भावना है, जिससे ठंढक में और वृद्धि हो सकती है और जनवरी के अंतिम सप्ताह में वर्षा भी हो सकती है, जिससे कुहरा में कमी आयेगी और धूप निकलने से तापमान में वृद्धि होने से शीतलहर के प्रभाव में भी कमी हो सकती है।
फरवरी में भी जारी रह सकता है जाड़े का क्रम :
डा० पाठक का यह भी कहना है कि मौसम वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से यह तथ्य सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऋतु (मौसम) की अवधि में निरन्तर परिवर्तन होता जा रहा है, जिसके कारण ऋतुएँ आगे की तरफ खिसकती जा रही हैं और एक आँकलन के अनुसार प्रत्येक ऋतु लगभग 15 दिन आगे खिसक गयी है। अगर यह तथ्य सही हो गया तो जाड़े की ऋतु भी खगे खिसकेगी और जाड़े का प्रभाव पूरे फरवरी मखह रह सकता है। डा० पाठक ने बताया कि इस ऋतु परिवर्तन का मुख्य कारण ग्रीन हाउस प्रभाव, ओजोन परत का नष्ट होना एवं ग्लोबल वार्मिंग है, जिससे जलवायु परिवर्तन हो रहा है और उसका प्रभाव प्रत्येक पक्षों पर परिलक्षित होने लगा है।
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