पीलिया या जॉन्डिस लिवर की एक बीमारी है जिसमें आंखे और त्वचा पीली पड़ जाती है। यह बीमारी नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को ज्यादा होती है।
पीलिया या जॉन्डिस लिवर की एक बीमारी है जिसमें आंखे और त्वचा पीली पड़ जाती है। यह बीमारी नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को ज्यादा होती है। अधिकांश बच्चे जन्म के समय से ही जॉन्डिस से पीड़ित होते हैं, लेकिन इसमें घबराने जैसी कोई बात नहीं होती क्योंकि जन्म के एक – दो सप्ताह के अंदर बच्चे का जॉन्डिस खुद – ब – खुद ठीक हो जाता है। नवजात बच्चों में जॉन्डिस होना आम बात है। डॉक्टर्स के अनुसार, 10 में से 6 नवजात बच्चे जॉन्डिस से पीड़ित होते हैं लेकिन 20 में से केवल 1 बच्चे को ही इसके इलाज की जरूरत पड़ती है।
नवजात में पीलिया के कारण अविकसित लिवर –
लिवर हमारे खून से बिलीरुबिन को साफ़ करने का काम करता है लेकिन नवजात बच्चों का लिवर ठीक से विकसित नहीं होता, जिससे उसे बिलीरुबिन को सही से फिल्टर कर पाने में कठिनाई होती है। जब शिशु के रक्त में इस तत्व की मात्रा बढ़ जाती है तो वह जॉन्डिस से ग्रस्त हो जाता है। इसके अलावा प्रीमेच्योर बच्चे (जिन बच्चों का जन्म समय से पहले हो जाता है) में जॉन्डिस का खतरा बढ़ जाता है। ठीक से स्तनपान न करना और रक्त संबंधी कारणों से भी नवजात शिशु को जॉन्डिस होता है।
पीलिया के लक्षण
इसका पहला लक्षण है शरीर में पीलापन दिखना। शिशु का चेहरा जॉन्डिस के कारण पीला दिखने लगता है। फिर उसके बाद छाती, पेट, हाथ व पैरों पर भी पीलापन नज़र आने लगता है।
नवजात शिशु के आंखों का सफेद भाग जॉन्डिस के कारण पीला पड़ने लगता है।
अगर शिशु सुस्त दिखे, उसे उल्टी और दस्त होने लगे, 100 डिग्री से ज़्यादा बुखार हो, गहरे पीले रंग का पेशाब हो – यह सब लक्षण जॉन्डिस के हैं।
पीलिया के उपचार
अगर आपको बच्चों में पीलिया के लक्षण दिखते हैं तो बिल्कुल भी देर न करें बल्कि किसी शिशु रोग विशेषज्ञ से तुरंत सलाह लें।
डॉक्टर बच्चे के जांच के बाद उचित दवाएं देते हैं। जॉन्डिस की जांच के लिए डॉक्टर बच्चे के खून की जांच करते हैं जिससे बच्चे के रक्त में मौजूद बिलीरुबिन और लाल रक्त कोशिकाओं के लेवल का पता लगाया जा सके।
शिशु के लिवर में संक्रमण की जांच के लिए डॉक्टर उसके यूरिन और मल की भी जांच करते हैं। जिससे जॉन्डिस का पता लगाकर बच्चे का इलाज किया कर सके।
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