इन दिनों हर शख्स के मन में दो बड़े सवाल हैं-आखिर कोरोना के दौर में अपनी इम्युनिटी कैसे बढ़ाएं? और दूसरा, यदि कोरोना संक्रमण हो जाए तो उससे निजात के लिए कौन सा ट्रीटमेंट लें? लेकिन, इन दोनों ही सवालों के जवाब में जब विटामिन का जिक्र आता है तो उसे हल्के में लिया जाता है. जान लीजिए, ऐसा समझने वाले घातक भूल कर रहे हैं.
ज़्यादा समझदारी में हम कई बार बेवकूफ़ी कर जाते हैं मैंने भी कुछ ऐसा ही किया जब मुझे कोरोना संक्रमण हुआ. मैं दिल्ली के एक बेहतरीन अस्पताल में भर्ती था. वहां कोरोना की मुख्य दवा फैबीफ्लू के साथ मुझे ज़िंक, विटामिन सी और विटामिन डी की गोलियां दी गईं. मैंने पहले पढ़ रखा था कि आर्टिफिशियल विटामिन सप्लीमेंट कुछ ख़ास काम के नहीं होते. बॉडी भी इन्हें पूरा एबसॉर्ब नहीं कर पाती. थोड़ा ही असर होता है. ज़्यादा ले लें तो साइड इफेक्ट का ख़तरा अलग से. पीपीई किट में सिर से पैर तक फ़ुल पैक नर्स ने मुझे जब विटामिन की ये गोलियां दे कर हिदायत दी कि सर ये खाने के बाद खानी है तो मैं खुद को समझदार समझ के मुस्कुराया. मन में ही कहा कि डॉक्टरों को बेवक़ूफ़ कम पढ़े लिखों को बनाना चाहिए. मैंने गोलियां खाईं भी तो लापरवाही के साथ. कभी खा लीं. कभी छोड़ दीं. मैंने इन गोलियों को उतना ही सम्मान दिया जितना कि डॉक्टर की तुलना में वॉर्ड बॉय को देते हैं. प्रभु कृपा से ठीक भी हो गया. फिर घर पहुंचकर जब कोरोना पर रिसर्च शुरू की तब अपनी नासमझी पर तरस आया. पता चला कि जिंक, विटामिन सी और विटामिन डी कोरोना वायरस की जंग जीतने में वाक़ई मददगार हैं. इन तीनों का उपयोग कोरोना काल में नियमित रूप से ज़रूरी है. कोरोना होने से पहले भी, साथ भी और बाद भी.
विटामिन सी हमारे इम्यून सिस्टम को मज़बूत कर के रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है. यह एक एंटी ऑक्सीडेंट भी है. यह हमारे रक्त में मौजूद ल्यूकोसाइट-व्हाइट ब्लड सेल्स के काम करने के लिए ज़रूरी है. जिस से हमारे शरीर की श्वेत रक्त कोशिकायें किसी भी संक्रमण से मज़बूती से लड़ पाती हैं. लखनऊ के मेदांता अस्पताल में कार्यरत एक वरिष्ठ डॉक्टर रूचिता शर्मा से मैंने जब संशय के साथ पूछा कि क्या ये विटामिन वाक़ई मददगार होते हैं? उन्होंने पूरे विश्वास के साथ तुरंत बताया कि कैसे इन विटामिन की मदद से उन्होंने अपने मरीज़ों की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार देखा.
एक अनुभवी डॉक्टर की इस स्वीकारोक्ति के बाद विटामिन की इन गोलियों पर मेरा भरोसा बढ़ना स्वाभाविक था. निश्चित ही क़ुदरती आहार के माध्यम से शरीर में विटामिन व पोषक तत्वों की पूर्ति एक सर्वोत्तम तरीक़ा है लेकिन बीमारी के इस दौर में यह गोलियां उस कमी को सरलता से दूर कर सकती हैं.
एक वयस्क के लिए रोज़ विटामिन सी का 65 से 90 मिलीग्राम डोज निर्धारित है. इसकी अधिकतम सीमा 2000 मिलीग्राम रोज़ है. विटामिन सी पानी में घुलनशील है. विटामिन सी न तो शरीर के भीतर बनता है न ही स्टोर हो पाता है. इसलिए यदि इसकी मात्रा ज़्यादा भी हो जाए तो नुक़सानदायक नहीं क्योंकि शरीर अधिक मात्रा को फ़िल्टर करके बाहर कर देता है.
विटामिन डी का मुख्य काम हड्डियों को मज़बूत करना है, यह हम सभी जानते हैं. लेकिन यह शरीर के भीतर ऐसे प्रोटीन को बनाने में मदद करता है जो विशेष रूप से रेस्पिरेटरी ट्रैक के बैक्टेरिया और वायरस को मारने में मदद करता है. इसका यही गुण इसे कोरोना के खिलाफ़ एक मारक हथियार बनाता है. आम तौर पर शहरों में रहने वाले अधिकांश लोगों में इसकी कमी संभावित होती है. क्योंकि विटामिन डी सूरज की रौशनी में हमारे शरीर में बनता है और यह सामान्य भोजन में नहीं पाया जाता है.
दशकों के शोध से यह साबित हुआ है कि जिंक सर्दी के असर को कम करता है. जुखाम को जल्दी ठीक करता है. कोरोना वायरस का सबसे पहले अध्ययन करने वालों में एक पैथोलॉजिस्ट और वायरोलॉजिस्ट जेम्स रौब्ब के मुताबिक़ जिंक कोरोना वायरस को नाक और गले में बढ़ने से रोकता है. साथ ही यह विटामिन सी के शरीर में सोखने की क्षमता को भी बढ़ाता है. यह व्हाइट ब्लड सेल्स के परिपक्व होने में मदद करता है फलस्वरूप शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है.
यह हमारे स्वाद और गंध की क्षमता के लिए ज़रूरी है जो कि कोरोना होने पर कई बार प्रभावित हो जाती है. शरीर के भीतर मौजूद सौ से ज़्यादा विभिन्न एन्जाइम को सुचारू रूप से काम करने के लिए जिंक की ज़रूरत होती है. शरीर ज़्यादा जिंक स्टोर नहीं कर सकता है इसलिए इसकी लगातार आपूर्ति ज़रूरी है. पहले किए गए अध्ययन के मुताबिक़ जिंक कोरोना वायरस के आरएनए पॉलीमर को बाधित कर उसे बढ़ने से रोकता है. जिंक की कमी से न्यूमोनिया होने का ख़तरा होता है. इन सभी खूबियों की वजह से जिंक भी कोरोना वायरस से लड़ाई का एक प्रमुख हथियार है.
राजनीति की तरह स्वास्थ्य के मामले में भी डॉक्टरों के बीच में अनेक प्रकार के मतभेद होते हैं. कोई किसी दवा को बहुत अच्छा बताता है तो कोई और उसी दवा को ख़राब कह कर ख़ारिज कर देता है. विटामिन का मामला भी अलग नहीं है. इसके उपयोग और मात्रा को लेकर डॉक्टरों के बीच में मतभेद हैं. लेकिन साथ ही सभी यह भी स्वीकार करते हैं कि विटामिन के साइड इफेक्ट घातक नहीं हो सकते. अत: कोरोना काल में जब बात जान बचाने की हो तो विटामिन की यह गोलियां लेने में कोई हर्ज नहीं लगता.
देश में अनेक बेहतरीन फार्मास्यूटिकल कंपनियां यह बनाती हैं. फिर भी मेरी राय में जिंकोविट और लिमसी की क्वालिटी बेहतर है. अपने सेगमेंट में दोनों ही मार्केट लीडर हैं. विटामिन डी सैशे, कैप्सूल और लिक्विड तीनों प्रकार का मिलता है. एैलकैम लैब के अपराइज डी3 कैप्सूल या कैमिस्ट से पूछकर कोई और भी ले सकते हैं. जिंकोविट और लिमसी की एक-एक गोली दिन में एक बार अथवा अधिकतम दो बार भी ली जा सकती है. विटामिन डी 60000 यूनिट की एक खुराक हफ़्ते में एक बार लेना ठीक रहेगा. इसकी ज़्यादा कमी होने पर डॉक्टर कुछ दिनों तक लगातार भी इसे लेने की सलाह देते हैं.
मेरा अनुभव उम्मीद है लोगों के प्रारंभिक मार्गदर्शन में काम आएगा. फिर भी सभी से अनुरोध है कि किसी एक्सपर्ट डॉक्टर से सलाह के बाद ही किसी भी प्रकार की दवा लें. अपनी जानकारी और प्रयासों से इस कोरोना महामारी में यदि एक अनमोल जीवन भी मैं बचा पाया तो ख़ुद को भाग्यशाली समझूंगा.
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